Course Type | Course Code | No. Of Credits |
---|---|---|
Foundation Elective | SUS1HN332 | 4 |
Semester and Year Offered: winter semester
Course Coordinator and Team:
Email of course coordinator:
Pre-requisites:
Summary:
यह पाठ्यक्रम विद्यार्थियों को साहित्य की व्यापक दुनिया से तैयार कराने के लिए किया अगया अहै इसलिए स्वाभाविक रूप से इसमें साहित्य की विधाओं की विविधता तथा साहित्य को प्रभावित करने वाली विभिन्न विचारधाराओं की उपस्थिति और विश्व के जानांकिकीय भूगोल की विविधता को समेटा गया है। इसमें हिंदी के साथ जुड़ी हुई उर्दू तथा हिंदी और उर्दू की मुश्तरका ज़मीन को प्रतिबिम्बित करने वाले साहित्य को रखा अगया है। इस पाठ्यक्रम में विद्यार्थी हिंदी और उर्दू, दोनों के भीतर ऐसे साहित्य का परिचय हासिल करेंगें जिससे नवजागरण, विभाजन और स्वातंत्रयोत्तर मानव अस्तित्व की समस्यायों को समझ सकेंगे। साथ ही हिंदी उर्दू भाषी क्षेत्र के बाहर सम्पूर्ण भारतीय साहित्य की उपलब्धियों के साथ अपने परिचित साहित्य के ताने-बाने की उलझनों उर सुलझनों का परिचय भी उन्हें मिल सकेगा। इसके ज़रिए भारतीय समाज की विषमता से उत्पन्न विक्षोभ की अभिव्यक्तियों को भी समझने में विद्यार्थियों को आसानी होगी। भारत विकासशील देशों के उपनिवेशवाद विरोधी चेतना का अविभाज्य अंग है। अतः इस पाठ्यक्रम में तत्संबंधी साहित्य का भी परिचय कराने की चेष्टा की गयी है। विकासशील देशों का यह उपनिवेशवादविरोधी परिदृश्य सांस्कृतिक अभिव्यक्ति में बहुस्वरीयता लिए हुए है। पाठ्यक्रम में दिए गए पाठों के ज़रिए विद्यार्थी इस बहुस्वरीयता को पहचानेंगे। इस पाठ्यक्रम में सम्पूर्ण विश्व साहित्य में आधुनिकता की विडंबनाओं से परिचित कराने वाला साहित्य भी रखा गया है ताकि विद्यार्थी साहित्य की देशगत और कालगत विविधताओं के साथ ही उसके शाश्वत प्रश्नों का भी साक्षात कर सकें।
Objectives.
Overall structure:
माड्यूल-1:
हिंदी-उर्दू का मुश्तरका साहित्य
हमारे विद्यार्थियों के परिचित साहित्य की एक अनदेखी विशेषता है: उसकी मुश्तरका ज़मीन। यह ज़मीन केवल समन्वय पर ही आधारित नहीं है बल्कि इसमें हिंदी और उर्दू, दोनों ही भाषाओं की विशेषताएँ भी झलकती हैं। बोध के स्तर पर इस साहित्य का निर्माण उपनिवेशवाद विरोधी माहौल से होता है लेकिन फिर वह देश के विभाजन की भयंकर त्रासदी में बदलता है। विभाजन के उपरांत दोनों ही देश अपने-अपने तरह की विशेष समस्याओं से गुज़रते हैं जिनका प्रतिबिम्बन दोनों ही देशों के रचनाकारों की रचनाओं में हुआ है। माड्यूल में दिए गए पाठों के ज़रिए विद्यार्थी इसका परिचय प्राप्त कर सकें।
निर्धारित पाठ:
माड्यूल-2:
भारतीय साहित्य
विभाजन के उपरांत बचे हुए भारत में विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों ने अलग-अलग तरह से अपनी-अपनी भाषाई परम्परा को व्यापक प्रश्नों से जूझते हुए समृद्ध किया है। समग्र भारतीय समाज के यथार्थ की झलक अलग-अलग क्षेत्रों में उनकी अपनी विशेषताओं के साथ उस भाषा के साहित्य में मिलती है। इसका विस्तार सांकृतिक वैभव के उत्सवीकरण से लेकर मानवेतर जगत की करना तथा सामाजिक पदानुक्रम के विरुद्ध विद्रोह तक फैला हुआ है। इस माड्यूल में दिए गए पाठों से विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति को व्याख्यायित करने वाले पद-बंधों, 'विविधता में एकता' तथा 'सामंजस्य और तनाव' की आलोचनात्मक पड़ताल का अवसर प्राप्त होगा।
निर्धारित पाठ:
हमारे समय में [अवतार सिंह पाश]
यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश [नवारूण भट्टाचार्य]
माड्यूल-3:
विकासशील देशों का साहित्य विशिष्ट ऐतिहासिक प्रक्रिया की उपज है। इस प्रक्रिया की लाक्षणिक विशेषता साम्राज्यवाद और उसके साथ स्थानीय कुलीन समुदाय का ऐसा संश्रय था जिसने इन देशों की भौतिक और मानवीय सम्पदा को गहरी क्षति पहुँचायी थी। इस विध्वंश के निशानात इन समाजों में तो मौजूद ही हैं, इन्हें सम्बंधित देशों के साहित्यकारों ने भी अपनी रचनाओं में जगह दी है। विकासशील देशों के साहित्य की विशेषता इन देशों की मनवीय त्रासदी और उससे संघर्ष करके अपनी अस्मिता को हासिल करने का प्रयत्न से सम्वलित रही है। हमारे विद्यार्थी अपने देश-काल के अनुभवों के साथ इस विराट उपनिवेशवाद विरोधी परम्परा को इस माड्यूल में समझ सकेंगे।
निर्धारित पाठ:
माड्यूल-4:
शेष विश्व साहित्य
सम्पूर्ण विश्व के आधुनिक जीवन की वास्तविकता का निर्माण विश्व-युद्धों की विभीषिका से हुआ है। इन युद्धों ने पहली बार मनुष्य को पूरी तरह से ऐतिहासिक परिस्थितियों के सामने निरीह साबित कर दिया। व्यक्ति की व्यक्तित्व-हीनता का विस्तार मानवीय सम्बन्धों तक हुआ। जिसके चलते समाज को टिकाए रखने वाली संस्थाओं पर भयंकर दबाव पड़ने लगा। बीसवीं सदी के इस भयावह यथार्थ को पश्चिमी जगत के लेखकों ने सबसे अधिक महसूस किया और उसे अपनी रचनाओं में अभिव्यक्ति दी। यह समूचा साहित्य अकर्मण्यता का नहीं वरन मनुष्य को निरीह बना देने वाली ऐतिहासिक-सामाजिक परिस्थितियों के विरुद्ध प्रतिकार का साहित्य है। विद्यार्थी इस माड्यूल में हमारे समय तक विस्तारित होते हुए बीसवीं सदी के इस यथार्थ तथा उससे उपजे मानवीय संकट का सम्वेदनात्मक ज्ञान प्राप्त किया ।
निर्धारित पाठ:
Assessment Details with weights:
Reading List:
ADDITIONAL REFERENCE:
Pedagogy:
Assessment structure (modes and frequency of assessments)-