Course Type | Course Code | No. Of Credits |
---|---|---|
Foundation Elective | SUS1HN337 | 4 |
Semester and Year Offered: 2nd semester 2017
Course Coordinator and Team: Gulshan Bano/Hindi faculty
Email of course coordinator: gulshan[at]aud[dot]ac[dot]in
Pre-requisites:
Aim: Understanding of Indian Culture through Literature
Course Outcomes:
Brief description of modules/ Main modules:
मध्यकालीन भारतीय समाज का एक विशिष्ट किंतु जीवंत यथार्थ ‘इंडो-इस्लामिक’ संस्कृति की मौजूदगी है। इस संस्कृति के चिन्ह साहित्यिक रचनाओं में दृष्टिगोचर होते हैं। ये साहित्यिक रचनाएँ कविता के क्षेत्र में सबसे अधिक फलित हुईं जिसे इनकी सामासिकता का ध्यान रखते हुए हिंदुस्तानी कविता का नाम दिया गया। इस सृजनात्मक उपलब्धि से दिल्ली के विद्यार्थी सहज ही परिचित होते हैं क्योंकि इनके रचनाकार दिल्ली और उसके आस-पास रचनारत रहे हैं। इस क्षेत्र में लम्बे समय तक चलने वाली इस गतिविधि के कुछ नमूनों और उनके ज़रिए उस समूची संस्कृति का परिचय इस पाठ्यक्रम के माध्यंम से विद्यार्थियों को कराया जाता है।
माड्यूल 1: सामासिक संस्कृति
हिंदुस्तान साझी संस्कृति कि अद्भुत मिसाल है | भारत में इस्लाम के आगमन के साथ स्थानीय आबादी के मिलने से जनता के भीतर एक विशेष क़िस्म के सांस्कृतिक माहौल का निर्माण हुआ। उस संस्कृति को समझने के लिए आमतौर पर सामासिक संस्कृति का नाम दिया गया है। इसकी विशेषता यह थी कि न तो यह मिश्रित संस्कृति थी, न ही सांस्कृतिक आदान-प्रदान की इसका आधार था बल्कि स्थानीय आबादी के धर्म और इस्लाम धर्मावलंबी जनता के सांस्कृतिक व्यवहार की सामन्यता ने मिलकर एक नई संस्कृति का प्रादुर्भाव हुआ। सामासिक संस्कृति को साहित्य के कवियों ने बखूबी अपनी रचनाओं में स्थान दिया है | धार्मिक सद्भाव कि भावना से ओत-प्रोत ये कवि सभी सीमाओं का अतिक्रमण कर एक दूसरे के यहाँ मनाये जाने वाले त्योहारों आदि का चित्रण बड़े ही मोहक ढंग से करते नजर आते है जो साझी संकृति कि मिसाल बन जाते है |
माड्यूल 2: दिल्ली का समाज और साझी संस्कृति
दिल्ली सांस्कृतिक अंतरलयन का केंद्र रही आयी है। न केवल हिंदुस्तानी कविता एक अधिकांश रचनाकार दिल्लीवासी रहे हैं बल्कि दिल्ली की सांस्कृतिक धरोहर के बड़े हिस्से का निर्माण भी इन्हीं रचनाकारों से जुड़े हुए स्थानों और स्मृतियों से हुआ है। वस्तुतः अधिकांश कला रूपों और स्थापत्य आदि में इस साझी संस्कृति की अनुगूँज क़दम-क़दम पर मौजूद है। विद्यार्थियों को इस माड्यूल में दिल्ली आधारित इन चीज़ों से फ़ील्ड ट्रिप के ज़रिए भी परिचित कराया ।
माड्यूल 3: साझी संस्कृति के दिल्लीवासी कवि
अमीर खुसरो [सकल बन फूल रही सरसों, आज रंग है री माँ रंग है री, छाप तिलक सब छीनी व अन्य],
मीर तकी मीर [पत्ता पत्ता बूटा बूटा, देख तो दिल के जाँ से उठता है, हस्ती अपनी हुबाब की सी है],
ग़ालिब [नुक्ताचीं है गमे दिल, कोई उम्मीद बर नहीं आती, हजारों ख़्वाहिशें ऐसी],
रहीम के चुनिंदा दोहे।
माड्यूल 4: साझी संस्कृति के अन्य कवि
कबीर [हमन है इश्क़ मस्ताना, दुलहिनि गावहु मंगलचार और चुनिंदा दोहे],
रसखान [या लकुटी अरु कामरिया, मोर पखा सर ऊपर राखिहौं, सेस महेस गणेस दिनेस, मानुस हौं तो वही रसखान]
नज़ीर [रोटीनामा, ब्याह कान्हा का, कन्हैया जी की होली, तिल के लड्डू],
बुल्ले शाह [बुल्ला की जाणा मैं कौन, बुल्ले नू समझावन आइयाँ, रांझा रांझा कर दी नी मैं],
वली दकनी [साजन तुम सुख सेती खोलो नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता ,जादू है तेरे नयन ग़ज़ल सूँ कहूँगा ]
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Reading List: